रांची : झारखण्ड सरकार के नयी नियुक्ति नियमावली जिसमें झारखंड में नियुक्तियों पर आवेदन करने के लिए अभ्यर्थियों को झारखण्ड से बारहवीं और दसवीं पास होने की शर्त रखी गयी है उसे असैंवधानिक बताया है।
गुरुवार को झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग की नियुक्ति नियमावली को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। इस मामले में सरकार से दवाव दाखिल करने को कहा गया था।
लेकिन राज्य सरकार की ओर से जवाब दाखिल नहीं किया गया जिसपर मामले की सुनवाई करने वाले चीफ जस्टिस डॉ राजीव रंजन और जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ ने कड़ी नाराजगी जताई है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “प्रथम दृष्टया से संशोधित नियमावली अवैधानिक प्रतीत हो रही है। नियमावली को देख प्रतीत होता है कि राज्य सरकार सामान्य वर्ग के छात्रों को झारखंड से बाहर जा कर पढ़ाई करने नहीं देना चाहती है। उन्हेँ यहीं रोक कर रखना चाहती है। जबकि झारखण्ड से ही बारहवीं व मैट्रिक पास होने संबंधी प्रावधान से आरक्षित वर्ग के छात्रों को इससे छूट दी गई है। आरक्षित वर्ग छात्र बहार जाकर पढ़ सकेंगे और नियुक्तियों में शामिल हो सकेंगे। इस तरह का प्रावधान को वैध नहीं माना जा सकता है। क्यों नहीं सारे नियुक्तियों पर रोक लगा दी जाए। वहीं राज्य सरकार की ओर से इस नियमावली को बनाने के पीछे की मंशा समझ में नहीं आ रही। प्रथम दृष्टया से प्रतीत होता है कि संविधान अनुच्छेद 14 वा 16 का उल्लंघन हो रहा है।“
अदालत ने कहा कि राज्य में नियुक्ति को लेकर अफरा-तफरी मची हुई है। कभी नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया जा रहा है तो कभी नहीं नियमावली के नाम पर विज्ञापन को रद करने का खेल चल रहा है। यदि इस मामले में जवाब देने में देरी की जाएगी तो अन्य नियुक्तियां भी प्रभावित होंगी।
जेएसएससी के अंतर्गत होने वाले 50 हज़ार से अधिक पदों पर होने वाली नियुक्ति पर संकट के बादल खड़े हो गए हैं।
कोर्ट की कड़ी टिप्पणी के बाद सरकार ने इस मामले में जवाब देने के लिए एक और अवसर माँगा है। जिसे कोर्ट ने स्वीकार करते हुए अगली फरवरी 8 तारीख को दी है। अदालत के दवारा जवाब दाखिल करने के लिए 8 फरवरी का समय दिया गया है।
प्रार्थी रमेश हांसदा और कुशल कुमार की और से दायर याचिका में कहा गया है कि नई नियमावली में राज्य के संस्थानों से 10वीं और प्लस टू की करने छात्रों के परीक्षा में शामिल होने की शर्त असवैंधानिक है। इसके अलावा 14 भाषाओं में से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया जबकि उर्दू ,बांग्ला और उड़ीसा सहित स्थानीय भाषाओं को शामिल किया गया है।
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